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ख्वाबो का कारवां
शनिवार, 3 अप्रैल 2010
चलते-फिरते लोग देवता हो गए
मैंने एक गुनाह क्या किया कि दरो-दीवार भी आईना हो गए
तुम बुत के बुत ही रहे और चलते-फिरते लोग देवता हो गए
रोहित "मीत"
1 टिप्पणी:
honey
4 अप्रैल 2010 को 11:54 pm बजे
bahut khoob.
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मै तो खुशियों मे भी मुस्कुरा नहीं पाया
मौत की चाह हों गयी
हमें तुम ख़ार रहने दो,
बिखरे बिखरे हैं ख़यालात
जारी है एक सफ़र मेरा
तुमको ना याद आयेंगे
इक सूरत की चाह में फिर
ज़ुल्फ़ बिखरा के निकले वो घर से
सपनो के दिन रात
चलते-फिरते लोग देवता हो गए
मेरे बारे में
Rohit "meet"
नादा था गिला करता रहा तन्हाइयो से अपनी दामन को छुड़ाता रहा मै रुसवाइयो से अपनी खुश था कड़ी धूप मै कोई हमराह है अपना "मीत" अक्सर फरेब खाता रहा मै परछाइयो से अपनी
मेरा पूरा प्रोफ़ाइल देखें
bahut khoob.
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