रविवार, 31 अक्तूबर 2010

दरिया से मिलके हमने समंदर की बात की

दरिया से मिलके हमने  समंदर की बात की 
यानि कि अपने आप के अन्दर की बात की 
हारा था कोन, जंग का मतलब था क्या भला 
पोरस से मिलके हमने सिकंदर की बात की 
हर शक्श अपने जख्म दिखने लगा मुझे 
महफ़िल मे हमने जब भी सितमगर की बात की
उनकी जुबां पे  " मीत" का भी नाम आ गया 
उनसे किसी ने जब भी सुखनवर की बात की  
रोहित कुमार "मीत"

उनकी फितरत है रूठजाने की

फ़िक्र मुझको नहीं ज़माने की 
मेरी आदत है मुस्कुराने की 


एक दिन मेरी जान जाएगी 
उनको आदत है आजमाने की 


मेरी आदत तो  है मनाने की 
उनकी फितरत है रूठजाने की 


तेरे चेहरे ने कह दिया सबकुछ 
कुछ जरुरत नहीं बताने की 


"मीत"उतना ह़ी याद आये है 
कोशिशे जितना कि भुलाने की 


रोहित कुमार "मीत"