रविवार, 31 अक्तूबर 2010

दरिया से मिलके हमने समंदर की बात की

दरिया से मिलके हमने  समंदर की बात की 
यानि कि अपने आप के अन्दर की बात की 
हारा था कोन, जंग का मतलब था क्या भला 
पोरस से मिलके हमने सिकंदर की बात की 
हर शक्श अपने जख्म दिखने लगा मुझे 
महफ़िल मे हमने जब भी सितमगर की बात की
उनकी जुबां पे  " मीत" का भी नाम आ गया 
उनसे किसी ने जब भी सुखनवर की बात की  
रोहित कुमार "मीत"

3 टिप्‍पणियां:

  1. हर शक्श अपने जख्म दिखने लगा मुझे
    महफ़िल मे हमने जब भी सितमगर की बात की

    bohot sundar panktiya :)

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  2. वाह, ऐसी उम्दा रचनाएं पढ़कर मजा आ जाता है और पढने का मन भी करता है. जारी रहें.
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    धनतेरस व दिवाली की सपरिवार बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं.
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    वात्स्यायन गली

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