सोमवार, 20 दिसंबर 2010

दरिया से मिलके हमने समंदर की बात की

दरिया से मिलके हमने समंदर की बात की
यानि की अपने आप के अन्दर की बात की

हारा था कौन,जंग का मतलब था क्या भला
पोरस से मिलके हमने सिकंदर की बात की

हर शख्स अपने जख्म दिखाने लगा मुझे
महफ़िल मे  जब भी सितमगर की बात की

उनकी जुबां पे "मीत" का भी नाम आ गया
उनसे किसी ने जब भी सुखनवर की बात की

रोहित कुमार "मीत"

शनिवार, 18 दिसंबर 2010

गुफ्तगू चाँद से करती रही रातभर

सर्द आहें सनम भरती रही  रातभर 
गुफ्तगू चाँद से करती रही रातभर 


था तेरा वादा मिलेंगे हम ख्वाब मे
इसलिए सजती-संवरती रही रातभर   


उफ़, तेरे ख्यालों की रेशमी छुवन 
बनके खुशबू बिखरती रही रातभर 


चाँद-तारों को अपने संग मे लिए 
चांदनी जमीं पे उतरती रही रातभर 


वो ना आया तो तस्वीर से बात की 
इस तरहां मै बहलती रही रातभर 


"मीत"ये रात,चाँद,ये हवा ये फिजा 
तेरे इंतज़ार मे बहकती रही रातभर


रोहित कुमार "मीत"

शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

गुफ्तगू चाँद से करती रही रातभर

सर्द आहे मै भरती रही रातभर
गुफ्तगू  चाँद से करती रही रातभर

वादा था मिलेंगे कभी  ख्वाब मे
इसलिए सजती-सवरती रही रातभर

उफ़  ख्यालो की रेशमी सी छुअन
बनके खुशबू बिखरती रही रातभर

चाँद -तारो तो अपने संग मे लिए
चांदनी दामन मे उतरती रही रातभर

वो ना आया तो तस्वीर से बात की
इस तरह  से बहलती रही रातभर

ये रात,ये चाँद, ये हवा, ये फिजां
तेरे इंतज़ार मे महकती रही रातभर

             रोहित कुमार "मीत"