शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

गुफ्तगू चाँद से करती रही रातभर

सर्द आहे मै भरती रही रातभर
गुफ्तगू  चाँद से करती रही रातभर

वादा था मिलेंगे कभी  ख्वाब मे
इसलिए सजती-सवरती रही रातभर

उफ़  ख्यालो की रेशमी सी छुअन
बनके खुशबू बिखरती रही रातभर

चाँद -तारो तो अपने संग मे लिए
चांदनी दामन मे उतरती रही रातभर

वो ना आया तो तस्वीर से बात की
इस तरह  से बहलती रही रातभर

ये रात,ये चाँद, ये हवा, ये फिजां
तेरे इंतज़ार मे महकती रही रातभर

             रोहित कुमार "मीत"

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