शनिवार, 18 दिसंबर 2010

गुफ्तगू चाँद से करती रही रातभर

सर्द आहें सनम भरती रही  रातभर 
गुफ्तगू चाँद से करती रही रातभर 


था तेरा वादा मिलेंगे हम ख्वाब मे
इसलिए सजती-संवरती रही रातभर   


उफ़, तेरे ख्यालों की रेशमी छुवन 
बनके खुशबू बिखरती रही रातभर 


चाँद-तारों को अपने संग मे लिए 
चांदनी जमीं पे उतरती रही रातभर 


वो ना आया तो तस्वीर से बात की 
इस तरहां मै बहलती रही रातभर 


"मीत"ये रात,चाँद,ये हवा ये फिजा 
तेरे इंतज़ार मे बहकती रही रातभर


रोहित कुमार "मीत"

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