मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

मै तो खुशियों मे भी मुस्कुरा नहीं पाया


कोंई     रिश्ता    निभा   नहीं   पाया 
मै    कभी    मुस्कुरा     नहीं   पाया 

देखकर   भूख    उन     गरीबों  की 
इक    निवाला    भी  खा नहीं पाया 

मुझको मंसब तो मिल रहा था मगर 
मै   कभी   सर   झुका  नहीं   पाया 

यू    किया   आईने    ने      शर्मिंदा 
फिर   कभी  सर उठा     नहीं पाया 

सोचकर  घर   मेरा  भी   है   इसमे 
गांव    को   मै जला     नहीं   पाया 

तुम  जुदा  हो  ये  बात तुम   जानो 
"मीत " ने  तो  जुदा   नहीं    पाया

Rohit kumar"meet"


मौत की चाह हों गयी

जब खताएं उनकी गुनाह हों गयी
हमारे लबों की हंसी आह हों गयी

ए बेवफा जिन्दगी ..अब् अलविदा
हमे तो .....मौत की चाह हों गयी

तब से ..जिन्दगी जहर लगती है
जब उन्हें गैरों की परवाह हों गयी

सात जन्मो के कसमें और वादे थे
कियूं इक पल में जुदा राह हों गयी

लुट गये है अब् खुशियों के काफिले
जबसे उनकी तिरछी निगाह हों गयी

सनम तुम मशहूर और आबाद रहो
बदनामिया सारी मेरी हमराह हों गयी

क्या कमी थी.भला मेरी वफाओं में
जो पूनम अमावस सी स्याह हों गयी

खुदा माना था वो बुत भी न निकले
मुहब्बत में जिन्दगी तबाह हों गयी....

            शायर - प्रदीप मिश्रा." दीप"
                 पेशकश - रोहित "मीत"

सोमवार, 5 अप्रैल 2010

हमें तुम ख़ार रहने दो,

मैं काग़ज़ के सिपाही काट कर लश्कर बनाता हूँ,
नहीं है काम ये आसां मगर अक्सर बनाता हूँ।


मेरी हालत तो देखे पास आकर उस घड़ी कोई,
मैं अरमानो में अपने आग जब हंस कर लगाता हूँ।

ये जितने फूल हैं ले लो हमें तुम ख़ार रहने दो,
ये दामन थाम लेंगे मैं इन्हें रहबर बनाता हूँ।

नज़र आती है मुझको हर हसीं चेहरे की सच्चाई,
मैं दरपन को उठा कर जब कभी पैकर बनाता हूँ।


जगा कर दर्द हर दिल में बुझा दो आग नफ़रत की,
मैं अपने अश्क़ से पैमाना- ए- कौसर बनाता हूँ।


जहाँ से दूर कोसों हो गया हो दर्द और आहें,
मैं ऐसे महल तख्तों-ताज को ठोकर लगता हूँ।

उठाई है क़लम हमने यहाँ तलवार के आगे,
मैं दुनिया को क़लम का आज ये जौहर दिखता हूँ।


मेरे गिरने पे क्यों 'अनवार' हंस पड़ती है ये दुनिया,
मैं ठोकर खा के अपनी ज़िन्दगी बेहतर बनाता हूँ।

                                      शायर- अनवारुल हसन
                                      पेशकश -रोहित "मीत"

रविवार, 4 अप्रैल 2010

बिखरे बिखरे हैं ख़यालात


कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं
रात के साथ गई बात मुझे होश नहीं

मुझको ये भी नहीं मालूम कि जाना है कहाँ
थाम ले कोई मेरा हाथ मुझे होश नहीं

आँसुओं और शराबों में गुज़र है अब तो
मैंने कब देखी थी बरसात मुझे होश नहीं

जाने क्या टूटा है पैमाना कि दिल है मेरा
बिखरे बिखरे हैं ख़यालात मुझे होश नहीं

                    शायर- डॉ. राहत इन्दौरी
                     पेशकश- रोहित "मीत"

जारी है एक सफ़र मेरा

जारी है एक सफ़र मेरा तीरगी के साथ
जंग चल रही है मेरी रौशनी के साथ


मुझे मालूम नहीं कि क्या सोच कर
मै खुद भी रो दिया बेबसी के साथ
ताज़ा हुए है जख्म मेरे फिक्र कीजिये
जब से मिला वो मुझे बेरुखी के साथ



पैमाने मै तुझको यू उदास देखकर
मैकदे से घर गया तिशनगी के साथ



होसलो तुम भी मेरे संग- संग चलो
जंग चल रही है मेरी जिंदगी के साथ



                            शायर- रोहित "मीत"
तीरगी/ अँधेरा
तिशनगी / प्यास

तुमको ना याद आयेंगे


तेरे बिना भी जी करके दिखाएँगे हम

आँखों मे अश्क लेकर मुस्कुराएंगे हम

तुमको ना याद आयेंगे वादा रहा मगर

मुमकिन नहीं कि तुमको भूल पाएंगे हम


                                         रोहित "मीत"

इक सूरत की चाह में फिर

भीतर बसने वाला ख़ुद बाहर की सैर करे, मौला ख़ैर करे

इक सूरत की चाह में फिर काबे को दैर करे, मौला ख़ैर करे

इश्क़विश्क़ ये चाहतवाहत मनका बहलावा फिर मनभी अपना क्या
यार ये कैसा रिश्ता जो अपनों को ग़ैर करे, मौला ख़ैर करे

रेत का तोदा आंधी की फ़ौजों पर तीर चलाए, टहनी पेड़ चबाए
छोटी मछली दरिया में घड़ियाल से बैर करे, मौला ख़ैर करे


सूरज काफ़िर हर मूरत पर जान छिड़कता है, बिन पांव थकता है
मन का मुसलमाँ अब काबे की जानिब पैर करे, मौला खैर करे

फ़िक्र की चाक पे माटी की तू शक्ल बदलता है, या ख़ुद ही ढलता है
"बेकल" बे पर लफ़्ज़ों को तख़यील का तैर करे, मौला ख़ैर करे

                                             शायर -पदम् श्री बेकल उत्साही
                                                          पेशकश - रोहित "मीत"

ज़ुल्फ़ बिखरा के निकले वो घर से

ज़ुल्फ़ बिखरा के निकले वो घर से
देखो बादल कहाँ आज बरसे।


फिर हुईं धड़कनें तेज़ दिल की
फिर वो गुज़रे हैं शायद इधर से।


मैं हर एक हाल में आपका हूँ
आप देखें मुझे जिस नज़र से।


ज़िन्दग़ी वो सम्भल ना सकेगी
गिर गई जो तुम्हारी नज़र से।


बिजलियों की तवाजों में ‘बेकल’
आशियाना बनाओ शहर से।
तवाजों = Hospitality

शायर -पदम् श्री बेकल उत्साही 

सपनो के दिन रात





काँटों बीच तो देखिये ,खिलता हुवा गुलाब


पहरा दुःख का है लगा ,सुख पर बिना हिसाब






पैसे की बोछार मे, लोग रहे हमदर्द


बीत गयी बरसात जब, आया मौसम सर्द






उम्र बढ़ी तो घट गए ,सपनो के दिन रात


अक्किल बगिया फल गयी ,सुख गए जज्बात
 
                                    पदम् श्री बेकल उत्साही

शनिवार, 3 अप्रैल 2010

चलते-फिरते लोग देवता हो गए





मैंने एक गुनाह क्या किया कि दरो-दीवार भी आईना हो गए
तुम बुत के बुत ही रहे और चलते-फिरते लोग देवता हो गए
                                                 
                                                    रोहित "मीत"