रविवार, 4 अप्रैल 2010
बिखरे बिखरे हैं ख़यालात
कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं
रात के साथ गई बात मुझे होश नहीं
मुझको ये भी नहीं मालूम कि जाना है कहाँ
थाम ले कोई मेरा हाथ मुझे होश नहीं
आँसुओं और शराबों में गुज़र है अब तो
मैंने कब देखी थी बरसात मुझे होश नहीं
जाने क्या टूटा है पैमाना कि दिल है मेरा
बिखरे बिखरे हैं ख़यालात मुझे होश नहीं
शायर- डॉ. राहत इन्दौरी
पेशकश- रोहित "मीत"
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