जब खताएं उनकी गुनाह हों गयी
हमारे लबों की हंसी आह हों गयी
ए बेवफा जिन्दगी ..अब् अलविदा
हमे तो .....मौत की चाह हों गयी
तब से ..जिन्दगी जहर लगती है
जब उन्हें गैरों की परवाह हों गयी
सात जन्मो के कसमें और वादे थे
कियूं इक पल में जुदा राह हों गयी
लुट गये है अब् खुशियों के काफिले
जबसे उनकी तिरछी निगाह हों गयी
सनम तुम मशहूर और आबाद रहो
बदनामिया सारी मेरी हमराह हों गयी
क्या कमी थी.भला मेरी वफाओं में
जो पूनम अमावस सी स्याह हों गयी
खुदा माना था वो बुत भी न निकले
मुहब्बत में जिन्दगी तबाह हों गयी....
शायर - प्रदीप मिश्रा." दीप"
पेशकश - रोहित "मीत"
मंगलवार, 6 अप्रैल 2010
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apke sandesh aatama ko aatmsaar kr dete hai kripya aise he achhi lekh likhte rahe
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