मंगलवार, 27 दिसंबर 2011

मै हैरत लिए आँखों मे

मै हैरत लिए आँखों मे फोटोफ्रेम मे उस चेहरे को तकता रहा
कितना जाना पहचाना सा था वो शक्श .....................
वही नैन वही नक्श मै भी कभी ऐसे ही एक शक्श को जानता था

तभी लम्हे ने ज़ेहन मे एक पत्थर उछाला कहीं कुछ चटखने की
आवाज़े आयीं ..
                     और मैंने उस चेहरें को कई हिस्सों मे बिखरता  पाया
ख्वामखाह उलझता रहा खुद से "मीत" वो कोई फोटोफ्रेम नहीं आईना था
आईना मेरे माजी का ............रोहित "मीत"

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