शनिवार, 15 मई 2010

'उत्साही हिंदी'

'उत्साही हिंदी'



मेरे पुरखे जायसी,"रहिमन",अरु "रसखान",
मै सुगंध हूँ देश की, देश है मेरी जान
देश है मेरी जान, की सब मेरे शैदाई ,
गीत,छंद, अतुकांत ,ग़ज़ल ,दोहे,चोपाई



मै हिंदी हूँ यार मेरी औकात ना पूछो,
मै भारत की ज्योति हूँ मेरी जाति न पूछो
भाषाओ की धूप-छांव मै मेरा सफ़र है ,
मेरी गति पर जाने क्यों दुनिया की नज़र है



मेरी गोद मै जगमगाय मस्जिद ओ 'शिवाला
बाहें गंगा-कावेरी अरु शीश हिमाला
मै 'खुसरो' का प्यार, प्यार ही मेरा जीवन,
दुनिया मे लहकू-महकू भारत है उपवन

पदमश्री बेकल उत्साही
पेशकश- रोहित कुमार "मीत

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें