उसने जब कभी महफ़िल मे कोंई भी नाम लिया जाने क्यों चुभन हुयी,और दिल को थाम लिया उसकी जफ़ाओ को भी हमने वफा समझ करके अपनी बरबादी का खुद पे "मीत" इल्जाम लिया
नादा था गिला करता रहा तन्हाइयो से अपनी
दामन को छुड़ाता रहा मै रुसवाइयो से अपनी
खुश था कड़ी धूप मै कोई हमराह है अपना "मीत"
अक्सर फरेब खाता रहा मै परछाइयो से अपनी
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